My Thoughts

  • आराध्य

    मेरे जीवन में
    कौन हो तुम ?
    कोरी आँखों के
    तैरते शब्द
    ठिठक कर
    रुक जाते
    अधरों पर …
    अस्पष्ट आवाज
    कहीं तो सुना
    वार्तालाप स्वयं से
    या कुछ और
    सच कहाँ ?
    हर क़दम
    मेरे साथ
    अदृश्य
    ‘आराध्य’…✍

    -अविचल मिश्र


  • तथ्यता

    चकाचौंध
    हर तरफ़
    दोहरे अस्तित्व में
    स्वयं से दूर
    मुस्कुराते चेहरे
    नयी ज़मीन
    तलाशते…
    अलग नहीं
    मैं भी
    भागता हूँ
    उन्हीं के रंगों को
    सच मानकर…
    तेज रोशनी
    चमकते सूर्य की
    अलौकिक
    अनुभूति क्यों ?
    गीली मिट्टी सा मन
    मेरे प्रभु!
    आज फिर
    बना दो…✍


    -अविचल मिश्र


  • आभासी प्रयास

    नतमस्तक था
    आराध्य के सामने
    मन की आँखों से
    एक-एक कर
    साफ़ दिखती
    सभी कमियाँ
    नया प्रण
    पूर्ण करने का
    अधूरी उन
    संकल्पनाओं को
    दिन भर घूमती
    अंगुलियाँ मेरी
    लैपटॉप कीबोर्ड पर
    विषय बदलती
    उनके अर्थ तलाशती
    अगली सुबह
    फिर आत्मावलोकन
    आभासी प्रयास
    और ‘मैं’…✍

    -अविचल मिश्र


  • वादों का शोर

    उम्मीदों से
    लिफ़ाफ़ा खोला
    केवल एक पेज
    आंग्ल भाषा में अंकित
    कुछ लाइनें
    समय के साथ
    नहीं था मैं…
    दौड़कर उस
    शिक्षक के पास
    गहरी श्वास के साथ
    धीमी आवाज़
    तुम्हारी ज़मीन
    अब किसी और की…
    किंकर्तव्यविमूढ़
    धीमा और फिर तेज होता
    चुनावी वादों का शोर
    ‘सभी के क़र्ज़ माफ़ होंगे’…✍

    -अविचल मिश्र


  • श्रेष्ठ कौन ?

    कुछ वक़्त लगा
    किताब में
    तय नहीं
    श्रेष्ठ कौन ?
    रचनाकार
    या चरित्र
    जो गढ़ा गया
    काल्पनिक
    विचारों को लेकर…
    दोनों ही प्रखर
    अपनी अवस्था में
    स्याही से जुड़े
    फिर भी दोनों ही…
    मेरी अज्ञानता पर
    हँसो मत!
    थोड़ा और
    सोचने दो…
    कुछ और
    वक़्त दो मुझे…..✍

    -अविचल मिश्र


  • मेरा हिस्सा

    मेरा हिस्सा
    दो मुझे
    अपनी यादों का…
    दिखा एक
    शून्य
    बेवजह
    उन ख़ूबसूरत
    पलकों पर…
    मैं नहीं
    ‘वैसा’
    असमंजस
    हर पल…
    आख़िर
    क्यों ओढ़ना
    मेरे मैले
    आवरण को ?
    झूठ नहीं
    ध्यान से देखो!
    कई रंग मेरे
    सभी कहते…
    कोई उत्तर नहीं
    प्रश्न उसे
    ग़लत लगा
    मुझसे भी ज़्यादा…✍

    -अविचल मिश्र


  • समर्पण

    रेंगता रहा ‘कुछ’
    रेतीली ज़मीन पर…
    निशान बने
    और विलुप्त भी
    कब आया ?
    कब गया ?
    किसी ने देखा ?
    संभवत: नहीं…
    कुछ विचार
    सरकते रहे
    मानस पटल पर
    मध्यम-मध्यम…
    नयी रेखा
    किसने खींची ?
    रहस्य ही रहा…
    पहले हल्का
    फिर भारी
    शब्दों का घेरा
    स्वतंत्र था अब
    मेरे घेरे से…

    -अविचल मिश्र


  • खुलकर जीते हैं…

    चलो…खुलकर जीते हैं ।
    खामोशी से क्या मिलेगा ?
    इन ख्यालों में डूबकर क्या मिलेगा ?
    चलो…खुलकर जीते हैं ।।

    हर पल ये अजीब सी उदासी क्यों ?
    जिंदगी से इतनी बेरुखी क्यों ?
    जीवन को पहचानो…।
    हर पल इसके महत्व को जानो…।।
    ये बार-बार टूटना क्यों ?
    ठेस लगी तो फिर बिखरना क्यों ?

    चलो…खुलकर जीते हैं ।
    आजाद परिंदों की तरह,
    उड़ना सीखते हैं…
    चलो…खुलकर जीते हैं ।।

    कोई नहीं साथ तो क्या हुआ ?
    दिन के उजाले में मत देखो कोई धुआँ ।
    खुद को भ्रमित रखकर क्या मिलेगा ?
    कोसने से तो ये दिल,
    और भी पत्थर होगा ।।
    तंग चेहरा और दबी आवाज से,
    नहीं होगी पहचान ।
    आगे बढ़ो…
    इसी से मिलेगा समस्या का समाधान ।।

    झूठ का आवरण…
    आज निकालकर,
    फेक देते हैं ।
    चलो…खुलकर जीते हैं ।।

    नीले आसमान में बिखरी,
    इंद्रधनुषी छटा ।
    ऊँचे पर्वत से झरने का,
    अपने ही अंदाज में गिरना ।।
    फूलों की खुशबू का,
    मस्तिष्क के हर एक कोने को कैद करना ।
    और फिर धीरे से,
    एक नये अवसर की सुगबुगाहट का होना ।।

    तो क्यों नहीं हम बढ़ सकते हैं उस पथ पर ?
    जहाँ सिर्फ खुशियाँ हों,
    हमारे कर्म की…
    हमारे सद्गुणों की…
    और हमारे सच्चे प्रयास की…

    तो चलो न…
    खुलकर जीते हैं ।
    अपने सारे दु:खों को पीछे छोड़ते हैं,
    एक नयी दुनिया को साकार करते हैं,
    चलो…खुलकर जीते हैं ।।

    – अविचल मिश्र


  • अनमोल

    कभी जिंदगी लगती है अर्थपूर्ण…
    और कभी बिल्कुल अर्थहीन ।
    ऐसा क्यों होता है ?
    जब सोचता हूँ तो दुख होता है ।।

    वक्त के साथ-साथ, क्यों बदलते जाते हैं ?
    जिंदगी के मायने..
    कभी अपने से प्रतीत होते हैं,
    तो कभी बेगाने ।
    ऐसा विरोधाभास… आखिर क्यों होता है ?
    जो बार बार मन में,
    एक भ्रम उत्पन्न करता है ।।

    जिंदगी… जन्म और मृत्यु नाम के,
    दो स्तम्भों पर खड़ी रहती है ।
    और इन्हीं के बीच…
    अपना सफर तय करती है ।।

    वास्तव में क्या है ये जिंदगी ?
    वह…जो एक स्तम्भ से चलकर,
    दूसरे पर समाप्त हो जाती है ।
    जिसमे निहित हैं अर्थपूर्ण और अर्थहीन शब्द….
    पर क्या दो शब्द जिंदगी के लिए आवश्यक हैं ?
    सच कहूं तो अपने नजरिये द्वारा,
    हम जिंदगी को एक नाम देते हैं ।।

    जिस तरह मृत्यु एक कड़वा सच है ।
    ठीक उसी तरह यह भी तो एक सच है कि,
    जिंदगी तो सिर्फ जिंदगी है ।।
    इसमें अर्थपूर्ण और अर्थहीन शब्द का,
    कोई औचित्य नहीं..

    हमारी सोच ही.. जिंदगी को,
    इन दो शब्दों में बाँधने का,
    प्रयास करती है ।
    यह इन दो शब्दों से कहीं आगे है ।।
    यह इतनी छोटी नहीं कि,
    जिसे हम सिर्फ दो शब्दों में..बाँध सकें ।
    इसका विस्तार तो अनंत है…
    इसे किसी भी शब्द में समेटना..असंभव ।।

    हम जिंदगी को सिर्फ,
    अपने लिये जीना चाहते हैं,
    इसलिए अर्थपूर्ण और अर्थहीन के जाल में,
    उलझते हैं ।
    पर क्या यह संभव नहीं..
    कि हम इन दो शब्दों में न उलझे,
    और जिंदगी को ऐसा आयाम दें,
    जो पूर्णतया औरों को समर्पित हो ।।

    जिंदगी तो एक निस्वार्थ सेवा भाव है ।
    जो अर्थपूर्ण और अर्थहीन शब्दों से कहीं आगे है ।।
    जिसका कोई मोल नहीं,
    जो अनमोल है…

    – अविचल मिश्र


  • प्रतिशोध

    बहुत खेलने का शौक है उनको आग से,
    अब जलाकर राख कर दो ।
    दुनिया के मानचित्र से,
    पाकिस्तान को साफ कर दो ।।

    हमारे जवान ही हमेशा क्यों शहीद होते जायेंगे ?
    इस खामोशी का तो, वो हमेशा लाभ उठायेंगे ।
    वक्त आ गया है…..कड़ी निंदा का,
    आवरण उठा कर फेंक दो ।।
    बहुत खेलने का शौक है उनको आग से,
    अब जलाकर राख कर दो ।।

    जिस घर का चिराग बुझा, उस घर को कौन चलायेगा ?
    हर बार एक ही बात, कि पड़ोसी मान जायेगा ।
    उठा लो शस्त्र, जमीन-आसमान एक कर दो..
    बहुत खेलने का शौक है उनको आग से,
    अब जलाकर राख कर दो ।।

    उदास है मन और रो रहा सारा वतन ।
    जो शहीद हुए हैं उनको, मेरा शत् शत् नमन ।।
    ‘एक के बदले दस सर’ की कहावत को चरितार्थ करना होगा ।
    जवानों की शहादत को यही सच्चा सम्मान होगा ।।

    कश्मीर को जलाते हैं जो हर दिन,
    उस देश के टुकड़े चार कर दो ।
    बहुत खेलने का शौक है उनको आग से,
    अब जलाकर राख कर दो ।।
    दुनिया के मानचित्र से,
    पाकिस्तान को साफ कर दो…

                                            – अविचल मिश्र